Microplastics Found in the Human Brain.माइक्रोप्लास्टिक्स मानव मस्तिष्क में पाए गए: क्या यह स्वास्थ्य के लिए खतरा है?
माइक्रोप्लास्टिक्स मानव मस्तिष्क में पाए गए: क्या यह स्वास्थ्य के लिए खतरा है?
शोध में मानव मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक्स के बढ़ते स्तरों का खुलासा हुआ है। जानिए इसका स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ सकता है और वैज्ञानिक इस पर क्या कहते हैं।
मानव मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक्स की खोज
एक हालिया शोध में पहली बार मानव मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स (MNPs) पाए जाने की पुष्टि हुई है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य चिंताएँ बढ़ गई हैं। ये छोटे प्लास्टिक कण हवा, पानी और भोजन में तो पहले से मौजूद थे, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इन्हें मस्तिष्क ऊतकों में भी खोजा है।
इस खोज ने मस्तिष्क की सुरक्षा दीवार (Blood-Brain Barrier) की प्रभावशीलता पर सवाल उठा दिए हैं। वैज्ञानिक अब यह पता लगाने में जुटे हैं कि ये कण मस्तिष्क में कैसे प्रवेश कर रहे हैं और इनका दीर्घकालिक प्रभाव क्या हो सकता है।
शोध में क्या सामने आया?
- स्टडी का प्रकाशन: Nature Medicine
- सैंपल साइज: 1997 से 2024 के बीच मरे हुए 91 लोगों के मस्तिष्क ऊतकों का विश्लेषण
माइक्रोप्लास्टिक स्तरों में वृद्धि:
- 2016 में औसत स्तर: 3,345 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम
- 2024 में बढ़कर: 4,917 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम (लगभग 50% वृद्धि)
ड्यूक यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट एंड्रयू वेस्ट ने इस खोज को चौंकाने वाला बताया। उन्होंने कहा, "जब हमने पहली बार यह डेटा देखा तो हमें विश्वास नहीं हुआ।"
माइक्रोप्लास्टिक्स के स्रोत और आकार
शोध में पाया गया कि ये प्लास्टिक कण एक समान नहीं होते।
- मुख्य स्रोत: ग्रोसरी बैग, प्लास्टिक बोतलें, फूड पैकेजिंग
- प्रमुख प्लास्टिक प्रकार: पॉलीइथिलीन (सबसे अधिक), पोलिस्टाइरीन (कम मात्रा में)
- आकार: नुकीले और पतले कण, जबकि लैब टेस्ट में आमतौर पर गोलाकार मोतीनुमा कणों का अध्ययन किया जाता था।
प्लायमाउथ यूनिवर्सिटी के माइक्रोप्लास्टिक विशेषज्ञ रिचर्ड थॉम्पसन के अनुसार, यह शोध दिखाता है कि रोजमर्रा की वस्तुओं से निकलने वाले प्लास्टिक कण हमारे शरीर में गहरे तक प्रवेश कर सकते हैं।
क्या माइक्रोप्लास्टिक्स न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से जुड़े हैं?
शोध में पाया गया कि डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) वाले 12 लोगों के मस्तिष्क में MNPs की मात्रा अधिक थी।
हालांकि, वैज्ञानिक अभी यह प्रमाणित नहीं कर पाए हैं कि माइक्रोप्लास्टिक्स का सीधा संबंध डिमेंशिया जैसी बीमारियों से है। रटगर्स यूनिवर्सिटी की टॉक्सिकोलॉजिस्ट फीबी स्टेपलटन का कहना है कि आगे और शोध की जरूरत है।
अगला कदम: वैज्ञानिकों को यह समझना होगा कि ये प्लास्टिक कण मस्तिष्क में क्या कर रहे हैं और शरीर इन पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।
निष्कर्ष
- मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक्स के बढ़ते स्तरों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है।
- ये कण हवा, पानी और भोजन के जरिए शरीर में प्रवेश कर रहे हैं।
- इनका न्यूरोलॉजिकल बीमारियों से कोई संबंध हो सकता है, लेकिन इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है।
आपकी राय क्या है?
क्या आपको लगता है कि हमें प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए? अपनी राय कमेंट में बताएं!
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