PM Modi का ‘Hindu Rate of Growth’ पर बयान: क्या है इसका असली अर्थ?
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में राज्यसभा में कांग्रेस की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ के मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि यह शब्द न सिर्फ आर्थिक ठहराव को दर्शाता है, बल्कि हिंदुओं की छवि को भी अनुचित रूप से नुकसान पहुंचाता है।
![]() |
हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ: अर्थव्यवस्था और राजनीति की जंग |
क्या है ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’?
1982 में अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने यह शब्द भारत की 1950-1980 के दौरान की धीमी आर्थिक वृद्धि (औसतन 3.5%) को दर्शाने के लिए गढ़ा था। यह वृद्धि दर लगभग जनसंख्या वृद्धि के बराबर थी, जिससे प्रति व्यक्ति आय में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई।हालांकि, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अवधारणा पूरी तरह सटीक नहीं थी। उदाहरण के लिए, अर्थशास्त्री पुलप्रे बालकृष्णन के अनुसार, नेहरू शासन (1951-1964) के दौरान भारत की जीडीपी वृद्धि दर 4.1% थी, जो उस समय कई विकसित देशों से बेहतर थी।
क्या भारत ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ से बाहर निकल चुका है?
अक्सर माना जाता है कि भारत की तेज़ आर्थिक वृद्धि 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद शुरू हुई, लेकिन आंकड़े कुछ और कहते हैं।
- 1981-1991 के बीच भारत की औसत जीडीपी वृद्धि दर 5.8% थी, जो ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ से काफी अधिक थी।
- 1976 के बाद से ही भारत की वृद्धि दर 5.6% से अधिक हो गई थी, जिससे यह संकेत मिलता है कि आर्थिक सुधार 1991 से पहले ही शुरू हो चुके थे।
- इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार के दौरान हुई आर्थिक नीतियों में बदलाव ने भी इस वृद्धि को गति देने में अहम भूमिका निभाई।
क्या है ‘हिंदुत्वा रेट ऑफ ग्रोथ’?
दिसंबर 2023 में, बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने ‘हिंदुत्वा रेट ऑफ ग्रोथ’ शब्द का उपयोग किया और इसे ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ से अलग बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार के नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था 7.8% की दर से बढ़ रही है।
हालांकि, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह आंकड़ा संदर्भ से हटकर प्रस्तुत किया गया है।
- 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण भारत की जीडीपी लगभग 6% गिरी थी।
- इसके बाद के वर्षों (2021-22 और 2022-23) में तेज़ आर्थिक वृद्धि मुख्य रूप से लो बेस इफेक्ट की वजह से हुई।
- यदि इस प्रभाव को ध्यान में रखा जाए, तो ‘हिंदुत्वा रेट ऑफ ग्रोथ’ और ऐतिहासिक ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ में ज्यादा अंतर नहीं रहता।
निष्कर्ष
‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ बनाम ‘हिंदुत्वा रेट ऑफ ग्रोथ’ की बहस केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि राजनीतिक नैरेटिव का हिस्सा भी है।
भारत ने पिछले कुछ दशकों में निश्चित रूप से तेज़ आर्थिक प्रगति की है, लेकिन इसे केवल किसी एक सरकार या विचारधारा की उपलब्धि बताना इतिहास और नीति-निर्माण की बड़ी तस्वीर को नजरअंदाज करना होगा।
आगे बढ़ते हुए, भारत की सबसे बड़ी चुनौती सतत और समावेशी विकास होगी। सरकारों को लॉन्ग-टर्म आर्थिक रणनीतियों पर ध्यान देना चाहिए, न कि केवल राजनीतिक बहसों में उलझना चाहिए।
Comments
Post a Comment